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(Inclusive of all Taxes)तारापुर संग्राम - स्वतंत्रता आंदोलन के दूसरे सबसे बड़े गोलीकांड की कहानी
प्रकाशक: नील-नारायण प्रकाशन
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई महत्वपूर्ण घटनाएँ और संघर्ष हुए, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ देशवासियों की भावना को और भी प्रबल किया। इन्हीं घटनाओं में से एक है तारापुर संग्राम। यह घटना भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण और दुखद हिस्सा बन चुकी है, जिसे आमतौर पर स्वतंत्रता संग्राम के दूसरे सबसे बड़े गोलीकांड के रूप में जाना जाता है। इस कांड ने भारतीय जनता को न केवल अंग्रेजों के खिलाफ उठ खड़ा होने का साहस दिया, बल्कि उनकी कड़ी प्रतिक्रिया और अत्याचारों के खिलाफ आवाज भी उठाई।
तारापुर संग्राम 15 अगस्त 1942 को हुआ था। यह घटना उस समय की है जब भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ 'भारत छोड़ो आंदोलन' जोर पकड़ चुका था। भारत के विभिन्न हिस्सों में आंदोलन के तहत लोग एकजुट हो रहे थे, और ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध की लहर फैल रही थी। तारापुर, जो कि महाराष्ट्र के ठाणे जिले में स्थित है, उस समय एक शांतिपूर्ण गांव था, जहाँ के लोग भी स्वतंत्रता की दिशा में कदम बढ़ा रहे थे।
यह गोलीकांड तब हुआ जब गांव के लोग स्वतंत्रता संग्राम के तहत शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। अंग्रेजी पुलिस ने बिना किसी चेतावनी के उन पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं। कई लोग उस दिन शहीद हो गए और बहुत से लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। इस घटना ने न केवल तारापुर, बल्कि पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश और विरोध को जन्म दिया।
शांतिपूर्ण विरोध का दमन: तारापुर संग्राम की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि यह एक शांतिपूर्ण विरोध था। गांव के लोग केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए जुटे थे, लेकिन ब्रिटिश पुलिस ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए हिंसा का सहारा लिया।
लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन: तारापुर संग्राम में ब्रिटिश पुलिस द्वारा किया गया बलात्कार लोकतांत्रिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन था। यह घटना यह दिखाती है कि कैसे अंग्रेजी शासन ने भारतीय नागरिकों की आज़ादी और उनके बुनियादी अधिकारों की परवाह किए बिना उन्हें कड़ी सजा दी।
शहीदों की आत्मा की गूंज: तारापुर के शहीदों ने अपनी जान दी, लेकिन उनकी वीरता और बलिदान ने भारतीय जनता को एक नई प्रेरणा दी। यह घटना स्वतंत्रता संग्राम में एक और मोड़ साबित हुई और लोगों में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करने की और भी मजबूत भावना जागृत हुई।
तारापुर संग्राम ने भारतीय जनता को यह समझाने में मदद की कि स्वतंत्रता की लड़ाई में सिर्फ अहिंसा ही नहीं, बल्कि साहस और संघर्ष भी महत्वपूर्ण हैं। यह घटना उन संघर्षों का प्रतीक बनी, जिनसे भारतीय जनता को यह महसूस हुआ कि अगर उन्हें अपनी स्वतंत्रता प्राप्त करनी है, तो उन्हें हर कीमत पर विरोध करना होगा। इस घटना ने भारतीयों के मन में गहरी स्थायी छाप छोड़ी और यह स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में इतिहास में दर्ज हो गई।
इतिहास को समझें: इस किताब में तारापुर संग्राम की पूरी कहानी को विस्तार से बताया गया है, जो स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को समझने में मदद करेगा।
भारत के शहीदों को श्रद्धांजलि: इस किताब के माध्यम से हम उन शहीदों को याद कर सकते हैं जिन्होंने अपनी जान देकर भारत की स्वतंत्रता की नींव रखी।
प्रेरणा: यह किताब हमें यह सिखाती है कि किसी भी संघर्ष में सिर्फ बलिदान ही नहीं, बल्कि कड़ी मेहनत और एकजुटता भी जरूरी होती है।
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तारापुर संग्राम सिर्फ एक गोलीकांड नहीं था, बल्कि यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय था। यह घटना भारतीयों के साहस, संघर्ष और बलिदान का प्रतीक बन गई। नील-नारायण प्रकाशन ने इस किताब के माध्यम से हमें उस समय के संघर्षों और शहीदों की वीरता की गाथा को याद करने का अवसर प्रदान किया है।
तो, आज ही इस किताब को पढ़ें और स्वतंत्रता संग्राम के एक अहम हिस्से से जुड़ें!